Wednesday, January 8, 2020

Tanaji Malusare

हमारे भारतवर्ष में एक से बढ़कर एक वीर योद्धा हुए जिन्होंने अपने देश के लिए बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़ कर भारत के इतिहास के सुनहरे पन्नों में अपना नाम दर्ज कराया। आज हम जिस वीर योद्धा की बात कर रहे हैं वह मराठा साम्राज्य से जुड़े हुए हैं। वीर छत्रपति शिवाजी राव के बारे में तो आपने सुना ही होगा उनके काल में उन्होंने ढेरों लड़ाइयां लड़ी और उन्हें जीतकर कई के लिए अपने नाम कर लिए। आज हम उनके ही सबसे अजीज दोस्त तानाजी मालुसरे की बात कर रहे हैं। तो आइए जानते हैं तानाजी मालुसरे जैसे वीर योद्धा के बारे में विस्तार से….


तानाजी मालुसरे छत्रपती शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान मराठा सरदार थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य स्थापना के लिए सुभेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे । तानाजी छत्रपती शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे वे बचपन मे एक साथ खेले थे  वें १६७० ई. में सिंहगढ़ की लड़ाई में अपनी महती भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उस दिन सुभेदार तानाजी मालुसरेजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी मालुसरे जी छत्रपती शिवाजी महाराज जी को आमंत्रित करने पहुंचे तब उन्हें ज्ञात हुआ की कोंढाणा पर छत्रपती शिवाजी महाराज चढ़ाई करने वाले हैं, तब तानाजी मालुसरे जी ने कहा राजे मैं कोंढाणा पर आक्रमण करुंगा |अपने पुत्र रायबा के विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए कोंढाणा किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। छत्रपती शिवाजी महाराज जी की सेना मे कई सरदार थे परंतु छत्ररपती शिवाजी महाराज जी ने विर तानाजी मालुसरे जी को कोढाना आक्ररमन के लिए चुना[3] और कोंढणा "स्वराज्य" में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह समाचार सुनी तो वो बोल पड़े "गढ़ तो जीता, लेकिन मेरा "सिंह" नहीं रहा

तानाजीराव का जन्म १७वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास 'उमरथे' में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथी थे। ताना और शिवा एक-दूसरे को बहुत अछी तरह से जानते थे। तानाजीराव, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। वे शिवाजी के साथ औरंगजेब से मिलने Aagra गये थे तब औरंगजेब ने शिवाजी और तानाजी को कपट से बंदी बना लिया था। तब शिवाजी और तानाजीराव ने एक योजना बनाई और मिठाई के पिटारे में छिपकर वहां से बाहर निकल गए। ऐसे ही एक बार शिवाजी महाराज की माताजी लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं। तब शिवाजी ने उनके मन की बात पूछी तो जिजाऊ माता ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिकों को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा? किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, "मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला"।

तानाजीराव के साथ उनके भाई सूर्याजी मालुसरे और मामा ( शेलार मामा) थे। वह पूरे ३४२ सैनिकों के साथ निकले थे। तानाजीराव मालुसरे शरीर से हट्टे-कट्टे और शक्तिपूर्ण थे। कोंडाणा का किला रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित था और शिवाजी को इसे कब्जा करना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था।

कोंडाणा तक पहुंचने पर, तानाजी और ३४२ सैनिकों की उनकी टुकड़ी ने पश्चिमी भाग से किले को एक घनी अंधेरी रात को घोरपड़ नामक एक सरीसृप की मदद से खड़ी चट्टान को मापने का फैसला किया। घोरपड़ को किसी भी ऊर्ध्व सतह पर खड़ी कर सकते हैं और कई पुरुषों का भार इसके साथ बंधी रस्सी ले सकती है। इसी योजना से तानाजी और उनके बहुत से साथी चुपचाप किले पर चढ़ गए। कोंडाणा का कल्याण दरवाजा खोलने के बाद मुग़लों पर हमला किया।

किला उदयभान राठौड़ द्वारा नियंत्रित किया जाता था, जो राजकुमार जय सिंह-१ द्वारा नियुक्त किया गया था। उदय भान राठौड़ के नेतृत्व में ५००० मुगल सैनिकों के साथ तानाजी का भयंकर भयंकर युद्ध हुआ। तानाजी एक larai lare । इस किले को अन्ततः जीत लिया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में, तानाजी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। जब छत्रपती शिवाजी महाराज जी को यह दुःखद वार्ता मिली तो वे बहोत दुःखी, आहात हुये. छत्रपती शिवाजी महाराज ने काहा - मराठी - "गढ़ आला, पण सिंह गेला".अर्थ -"हमने गढ़ तो जीत लिया, लेकिन मेने मेरा सिंह खो दिया"

तानाजीकी वीरता तथा त्याग : लगभग ३०० लोग ही अबतक ऊपरतक चढ पाए थे, कि पहरेदारोंको उनके आनेकी भनक हो गई । मराठा सैनिकोंने पहरेदारोंको तुरंत काट डाला, किंतु शस्त्रोंकी खनखनाहटसे गढकी रक्षा करनेवाली सेना जाग गई । तानाजीके सामने बडी गंभीर समस्या खडी हुई । उनके ७०० सैनिक अभी नीचे ही खडे थे तथा उन्हें अपनेसे कहीं अधिक संख्यामें सामने खडे शत्रुसे दो-दो हाथ करने पडे । उन्होंने मन-ही-मन निश्चय किया तथा अपने सैनिकोंको चढाई करनेकी आज्ञा की । लडाई आरंभ हो गई । तानाजीके कई लोग मारे गए, किंतु उन्होंने भी मुगलोंके बहुत सैनिकोंको मार गिराया । अपने सैनिकोंकी हिम्मत बढाने हेतु तानाजी जोर-जोरसे गा रहे थे । थोडे समयके पश्चात मुगलोंका सरदार उदय भान तानाजीसे लडने लगा । मराठोंको अनेक अडचनें आ रही थीं । रातकी लंबी दौड, मुहीमकी चिंता, किलेकी दुर्ग चढकर आना, तथा घमासान युद्ध करना; इन सारी बातोंपर तानाजी पूर्वमें ही कडा परिश्रम कर चुके थे, इसपर उदय भानने युद्ध कर उन्हें पूरा ही थका दिया; परिणामस्वरूप लंबी लडाईके पश्चात तानाजी गिर गए ।

अपने नेताकी मृत्युसे मराठोंके पांवतलेसे भूमि खिसक गई । तानाजीने जितना हो सका, उतने समय युद्ध जारी रखा , जिससे नीचे खडे ७०० सैनिक पहरा तोडकर अंदर घुसनेमें सफल हों । वे तानाजीके बंधु सूर्याजीके नेतृत्वमें लड रहे थे । सूर्याजी बिलकुल समयपर पहुंच गए तथा उनकी प्रेरणासे मराठोंको अंततक लडनेकी हिम्मत प्राप्त हुई । मुगल सरदारकी हत्या हुई तथा पूरे किलेकी सुरक्षा तहस नहस हो गई । सैकडों मुगल सिपाही स्वयंको बचानेके प्रयासमें किलेसे कूद पडे तथा उसमें मारे गए ।

मराठोंको बडी विजय प्राप्त हुई थी किंतु उनकी छावनीमें खुशी नहीं थी । जीतका समाचार शिवाजी महाराजको भेजा गया था, जो तानाजीका अभिनंदन करने तुरंत गढकी ओर निकल पडे, किंतु बडे दुखके साथ उन्हें उस शूर वीरकी मृत देह देखनी पडी । सिंहगढका कथागीत इस दुखका वर्णन कुछ इस प्रकार करता है :

तानाजीके प्रति महाराजके मनमें जो प्रेम था, उस कारण वे १२ दिनोंतक रोते रहे । जिजाबाईको हुए दुखका भी वर्णन किया है : चेहरेसे कपडा हटाकर उन्होंने तानाजीका चेहरा देखा । विलाप करते हुए उन्होंने समशेर निकाली और कहा, `शिवाजी महाराज, जो एक राजा तथा बेटा भी है, आज उसकी देहसे एक महत्वपूर्ण हिस्सा कट चुका है ।’ शिवाजी महाराजको अपने मित्रकी मृत्युकी सूचना प्राप्त होते ही उन्होंने कहा, `हमने गढ जीत लिया है, किंतु एक सिंहको खो दिया है’ ।

तानाजी मालुसरे का महापराक्रम तथा स्वराज्य अर्थात् धर्मके प्रति उनकी निष्ठा को हम अभिवादन करतें हैं । आज प्रत्येक हिंदूने इनसे प्रेरणा लेकर धर्म तथा राष्ट्ररक्षण के लिए सिद्ध होना यहीं कालकी अत्यावश्यकता है !


कोंढाणा किले का युद्ध : छत्रपती शिवाजी महाराज जी के परममित्र सुभेदार तानाजी मालुसरे जी ने बड़े वीरता का परिचय देते हुये कोंढाणा किले को, उसके पास के क्षेत्र को मुगलों के कब्जे से स्वतंत्र कराया. इस युद्ध के समय जब उनकी ढाल टूट गई तो तानाजी मालुसरे जी ने अपने सिर के फेटे (पगड़ी) को अपने हाथ पर बांधा और तलवार के वार अपने हाथों पर लिये एक हाथ से वे वायु की तेज गती से तलवार चलाते रहे. कोंढाणा कीले के कीलेदार उदयभान राठौड़ से तानाजी मालुसरे जी ने युद्ध किया और उदयभान राठौड़ का वध किया.


स्मारक: तानाजी मालुसरे की स्मृति में कोंढाणा दुर्ग का नाम बदलकर सिंहगढ़ कर दिया गया है। पुणे नगर के 'वाकडेवाडी' नामक भाग का नाम बदलकर 'नरबीर तानाजी वाडी' कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त तानाजी के अनेकों स्मारक हैं। .